हरि अनंत हरि कथा अनंता...

एक बार की बात है एक संत जगन्नाथ पुरी से मथुरा की ओर आ रहे थे। उनके पास बड़े सुंदर ठाकुर जी थे। वे संत उन ठाकुर जी को सदैव साथ ही लिए रहते थे और बड़े प्रेम से उनकी पूजा अर्चना कर लाड़ किया करते थे । ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने ठाकुर जी को अपने बगल की सीट पर रख दिया और अन्य संतो के साथ हरि चर्चा में मग्न हो गए। जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे तब वे सत्संग में इतनें मग्न हो चुके थे कि झोला गाड़ी में ही रह गया उसमें रखे ठाकुर जी भी वहीं गाड़ी में रह गए। संत सत्संग के दिव्य भावों में ऐसा बहे कि ठाकुर जी को साथ लेकर आना ही भूल गए। बहुत देर बाद जब उस संत के आश्रम पर सब संत पहुंचे और भोजन प्रसाद पाने का समय आया तो उन प्रेमी संत ने अपने ठाकुर जी को खोजा और देखा कि, हाय हमारे ठाकुर जी तो हैं ही नहीं। संत बहुत व्याकुल हो गए, बहुत रोने लगे परंतु ठाकुर जी मिले नहीं। उन्होंने ठाकुर जी के वियोग में अन्न जल लेना स्वीकार नहीं किया। संत बहुत व्याकुल होकर विरह में अपने ठाकुर जी को पुकार कर रोने लगे। तब उनके एक पहचान के संत ने कहा - महाराज मैं आपको बहुत सुंदर चिन्हों से अंकित नये ठाकुर जी दे देता ह...